।। डाकौत/देशान्तरी ब्राम्हण समाज भारतवर्ष ।।
जय श्री डामराचार्य नमः
श्री शनैश्चराय नमः
वंश परिचय एवं इतिहास
सामान्य परिचयः- भार्गव ऋषि शुक्राचार्य के वंष में जन्म लेने वाले महर्षि डक्क(डामराचार्य) के वंशज डाकौत/देषान्तरी ब्राहम्ण कहलाते है।प्राचीन काल से इस समाज के लोगो का पेषा ज्योतिष कार्य होने से इस जाति के लोगो को ज्योतिषी या जोतगी (अपभ्रषं शब्द) भी कहते है। यह भगवान श्री शनिदेव के पुजारी होते है तथा अपने यजमानो को ज्योतिषीय सलाह देकर दान दक्षिणा लेते है।परन्तु पुरे भारतवर्ष में सभी शनि मंदिरो के पुजारी डाकौत/देषान्तरी ब्राहम्ण ही हो यह भी पूर्ण सत्य नही है।डाकौत ब्राहम्ण समाज के लोग आजकल नौकरी व अन्य पेशा मे आ जाने तथा अपना पुश्तेनी कार्य छोडने सें दान दक्षिणा के लालच में आजकल अन्य जाति के लोगो भी अपने निजी शनि मंदिर बनाकर वहां दान दक्षिणा ले रहे है।इस समाज के लोग क्रूर ग्रहो का दान लेकर उसको अपने तपोबल से पचाने का सामथ्र्य रखते है बाकी अन्य ब्राम्हण जातियां क्रूर ग्रहो का दान लेने से डरती रही है।इस समाज के लोग मुख्यतः राजस्थान व हरियाणा में पाये जाते थे परन्तु इनके वंषज अपनी आजीविका के लिए अन्य राज्यो में भी निवास करने लग गये।राजस्थान के कुछ जिला व राजस्थान से बाहर कुछ राज्यो जैसे यु.पी व एम.पी में कुछ अन्य जातियो के लोग भी स्वयं को भृगुवंशी का होना बताकर शनि का दान दक्षिणा आदि गृहण कर रहे है परन्तु डाकौत/देषान्तरी ब्राहम्ण समाज से कोई सबन्ध नही है।डाकौत देषान्तरी ब्राहम्ण समाज में 36 गौत्र है।इन 36 गौत्रीय समाज के व्यक्ति ही डाकौत ब्राहम्ण समाज के है।पूर्व में इस समाज के लोग अपने सरनेम में डाकौत, देषान्तरी, ज्योतिषी शब्द का प्रयोग करते थे परन्तु वर्तमान में अन्य ब्राम्हणो की तरह भार्गव, जोषी, शर्मा आदि का प्रयोग भी करने लगे है परन्तु गौत्र की जानकारी करके समाज के व्यक्तियो की आसाानी से पहचान की जा सकती है।
डाकौत बा्रहम्ण समाज के गोत्रः- पुरे भारतवर्ष में डाकौत/देषान्तरी ब्राहम्ण समाज में 36 गौत्र है जिनका विवरण संक्षिप्त में इस प्रकार से है। 1.गौषिल 2गौड 3.रावल 4.ढकारी 5.भोर्ज 6.भरट 7.वावल 8.लाल्याण 9.मल 10.कच्छप 11.गौषल 12.गुर्दर 13.लोहरी 14.सुरघ्वज 15.छिदुंलिया 16.गंेदियान 17.गौरिया 18. गंगेवर 19.अर्गल 20.तपषिल 21.पर्वोर्षि 22.वाामन 23.परियाल 24.भूकर्ण 25.ढापेल 26.शुक्रवाल 27.ब्रम्हपाल 28.मोहरी 29.बडगुर्ज 30.षिवल्याण 31. चर्वण 32.खंततर 33.लोधर 34.भारद 35.भटनाग 36.कायस्थ।
(सहयोग से:- श्री मुकेश जोशी प्रर्वोर्शि आमेट,राजसमन्द राज0)
वंष परिचय व इतिहासः- सृष्टि के रचयिता ब्रम्हा से अन्य मानस पुत्रो के साथ पेतामहर्षि भृगु हुए जिनसे प्रजापिता भृगु हुए जिनका विवाह दक्ष कन्या ख्याति से हुआ जिनके एक पुत्री लक्ष्मी व दो पुत्र धातृ तथा विधातृ हुए, धातृ के दो पुत्र प्रजापति भृगु व वत्स हुए।प्रजापति भृगु के वारूणी भृगु हुए जिनके दो पत्नियां दिव्या व पुलोमा थी।दिव्या से भार्गव शुकराचार्य व पुलोमा से चवन्य हुए। चवन्य के वंश में अलग ब्राह्मणो की शाखाएं निकली। शुक्राचार्य जी के पत्नी जयंती से एक पुत्री देवयानी व एक पुत्र आर्वी तथा दूसरी पत्नी गोधा से चार पुत्र शंड,अर्मक,त्वष्टा व वरुत्रिन हुए। महर्षि शंड के शंकराचार्य हुए जिनके शांडिल्य हुए , शांडिल्य जी के डामराचार्य हुए जो डक्क नाम से प्रशिद्द हुए जिनका विवाह वैध धन्वंतरि की पुत्री सावित्री से हुआ।डक्क के पांच पुत्र डिंडिम,दुरतिष्य, प्रतिष्य, सुषेण और शल्य हुए । उत्तर वैदिक काल मे अथर्व वेद की रचना काल के बाद के समय मे डामराचार्य का जन्मकाल माना जाता है। इस समय ब्राह्मण एक वर्ग से अपने अपने गोत्र की शाखाओं में बटने लगे थे। राजा महाराजाओं के सानिध्य में रहने वाले ब्राह्मणों ने अधिक लाभ प्राप्त किया। परंतु शुकराचार्य दैत्य गुरु होने से अन्य ब्राह्मणों ने इनके वंशजो से रंजिस रखते हुए इनको अलग वर्ग में रखा तथा तत्कालीन राजा महाराजाओं से कोई विशेष लाभ नही प्राप्त करने दिया तब महर्षि डामराचार्य ने ज्योतिष व चिकित्सा विद्या में निपुणता हासिल की ओर अपने पुत्रों को भी सिखाया।इन्होंने अथर्ववेद के प्रचलन के चरम काल मे जब अन्य ब्राह्मण कर्म कांड,पूजा,अनुष्ठान आदि कार्य कराने लगे तब डामराचार्य के वंशज ज्योतिष व चिकित्सा कार्य करने लगे।डामराचार्य जी के पुत्र डिंडिम ने अपने पिता के नाम पर अपने वंश को डक्का ब्राह्मण कहा और ज्योतिष कार्य करने लगे।तथा आगे चलकर ये डाकोत ब्राह्मण कहलाने लगे।बाद महृषि डामराचार्य के वंशज इनके मूल स्थान डाकोर गुजरात से राजस्थान से प्रवेश कर उत्तर भारत मे हरियाणा से दिल्ली व आगे तक बसते गए।पश्चिमी राजस्थान में इनको बाहर से आया हुआ होने के कारण ओर ज्योतिष का कार्य करने के कारण देशांतरी कहा गया।देशांतरी शब्द का एक अर्थ परदेशी भी होता है।
पौराणिक इतिहासः- (वायु पुराण अध्याय 4 व विष्वकर्मा पुराण)
भार्ये भृगोर प्रतिमे उत्तमेैभिजाते शुभे ।। हिरण्य कशिपोः कन्या दिव्यनाम्नी परिश्रुता ।।
पुलोम्नश्चापि पौलोमि दुहिता वर वर्णिनी ।। भृगोस्त्वजनयद्विव्या काव्यवेदविंदा वरं ।।
देवा सुराणामाचार्य शुक्रं कविसुंत ग्रहं ।। पितृंणा मानसी कन्या सोमपाना यशस्विनी ।। शुक्रस्य भार्यागीराम विजये चतुरः सुतान् ।। ब्राह्मणे मानसी कन्या सोमपाना यशस्विनीः ।। तस्या मेव तु चत्वार पुत्राः शुक्रस्य वज्राषिः ।। त्वष्टावरूपी द्वावेतौ शण्डामर्कोतु ताबुभो ।।
अर्थः- हिरण्यकश्यप की बेटी दिव्या और पुलोमी की बेटी पौलीमी उत्तम कुलीन, यह दोनों भृगु ऋषि को विवाही गई। दिव्या नाम वाली स्त्री के गर्भ से शुक्राचार्य पैदा हुए। सोम्य पितरों की मानसी कन्या अगीं नाम वाली शुक्राचार्य को विवाही गई। शुक्राचार्य जी के सूर्य के समान ब्रह्म तेज वाले त्वष्टा, वज्र, शंड और अर्मक यह पुत्र पैदा हुए।
महाभारत अनुषासन पर्व भाग 14 अध्याय 85 श्लोक सं. 128 व 129
भृगोस्तु पुत्रासप्तासन सर्वे तुल्या भृगोगुणे
चवन्यो वज्रषीर्षष्चः शुचिरोर्वस्तथैवच।
शुक्रो वरेण्यष्च विभुः सवनष्चेति सप्तते।
अर्थः-भुगु जी के गुणाो के समान उन्ही के वंष में चवन्य, व्रजषीर्ष, शुक्र, विभुव,वारुणी,व सवन आदि पुत्र हुये।
सामान्य परिचयः- भार्गव ऋषि शुक्राचार्य के वंष में जन्म लेने वाले महर्षि डक्क(डामराचार्य) के वंशज डाकौत/देषान्तरी ब्राहम्ण कहलाते है।प्राचीन काल से इस समाज के लोगो का पेषा ज्योतिष कार्य होने से इस जाति के लोगो को ज्योतिषी या जोतगी (अपभ्रषं शब्द) भी कहते है। यह भगवान श्री शनिदेव के पुजारी होते है तथा अपने यजमानो को ज्योतिषीय सलाह देकर दान दक्षिणा लेते है।परन्तु पुरे भारतवर्ष में सभी शनि मंदिरो के पुजारी डाकौत/देषान्तरी ब्राहम्ण ही हो यह भी पूर्ण सत्य नही है।डाकौत ब्राहम्ण समाज के लोग आजकल नौकरी व अन्य पेशा मे आ जाने तथा अपना पुश्तेनी कार्य छोडने सें दान दक्षिणा के लालच में आजकल अन्य जाति के लोगो भी अपने निजी शनि मंदिर बनाकर वहां दान दक्षिणा ले रहे है।इस समाज के लोग क्रूर ग्रहो का दान लेकर उसको अपने तपोबल से पचाने का सामथ्र्य रखते है बाकी अन्य ब्राम्हण जातियां क्रूर ग्रहो का दान लेने से डरती रही है।इस समाज के लोग मुख्यतः राजस्थान व हरियाणा में पाये जाते थे परन्तु इनके वंषज अपनी आजीविका के लिए अन्य राज्यो में भी निवास करने लग गये।राजस्थान के कुछ जिला व राजस्थान से बाहर कुछ राज्यो जैसे यु.पी व एम.पी में कुछ अन्य जातियो के लोग भी स्वयं को भृगुवंशी का होना बताकर शनि का दान दक्षिणा आदि गृहण कर रहे है परन्तु डाकौत/देषान्तरी ब्राहम्ण समाज से कोई सबन्ध नही है।डाकौत देषान्तरी ब्राहम्ण समाज में 36 गौत्र है।इन 36 गौत्रीय समाज के व्यक्ति ही डाकौत ब्राहम्ण समाज के है।पूर्व में इस समाज के लोग अपने सरनेम में डाकौत, देषान्तरी, ज्योतिषी शब्द का प्रयोग करते थे परन्तु वर्तमान में अन्य ब्राम्हणो की तरह भार्गव, जोषी, शर्मा आदि का प्रयोग भी करने लगे है परन्तु गौत्र की जानकारी करके समाज के व्यक्तियो की आसाानी से पहचान की जा सकती है।
डाकौत बा्रहम्ण समाज के गोत्रः- पुरे भारतवर्ष में डाकौत/देषान्तरी ब्राहम्ण समाज में 36 गौत्र है जिनका विवरण संक्षिप्त में इस प्रकार से है। 1.गौषिल 2गौड 3.रावल 4.ढकारी 5.भोर्ज 6.भरट 7.वावल 8.लाल्याण 9.मल 10.कच्छप 11.गौषल 12.गुर्दर 13.लोहरी 14.सुरघ्वज 15.छिदुंलिया 16.गंेदियान 17.गौरिया 18. गंगेवर 19.अर्गल 20.तपषिल 21.पर्वोर्षि 22.वाामन 23.परियाल 24.भूकर्ण 25.ढापेल 26.शुक्रवाल 27.ब्रम्हपाल 28.मोहरी 29.बडगुर्ज 30.षिवल्याण 31. चर्वण 32.खंततर 33.लोधर 34.भारद 35.भटनाग 36.कायस्थ।
(सहयोग से:- श्री मुकेश जोशी प्रर्वोर्शि आमेट,राजसमन्द राज0)
वंष परिचय व इतिहासः- सृष्टि के रचयिता ब्रम्हा से अन्य मानस पुत्रो के साथ पेतामहर्षि भृगु हुए जिनसे प्रजापिता भृगु हुए जिनका विवाह दक्ष कन्या ख्याति से हुआ जिनके एक पुत्री लक्ष्मी व दो पुत्र धातृ तथा विधातृ हुए, धातृ के दो पुत्र प्रजापति भृगु व वत्स हुए।प्रजापति भृगु के वारूणी भृगु हुए जिनके दो पत्नियां दिव्या व पुलोमा थी।दिव्या से भार्गव शुकराचार्य व पुलोमा से चवन्य हुए। चवन्य के वंश में अलग ब्राह्मणो की शाखाएं निकली। शुक्राचार्य जी के पत्नी जयंती से एक पुत्री देवयानी व एक पुत्र आर्वी तथा दूसरी पत्नी गोधा से चार पुत्र शंड,अर्मक,त्वष्टा व वरुत्रिन हुए। महर्षि शंड के शंकराचार्य हुए जिनके शांडिल्य हुए , शांडिल्य जी के डामराचार्य हुए जो डक्क नाम से प्रशिद्द हुए जिनका विवाह वैध धन्वंतरि की पुत्री सावित्री से हुआ।डक्क के पांच पुत्र डिंडिम,दुरतिष्य, प्रतिष्य, सुषेण और शल्य हुए । उत्तर वैदिक काल मे अथर्व वेद की रचना काल के बाद के समय मे डामराचार्य का जन्मकाल माना जाता है। इस समय ब्राह्मण एक वर्ग से अपने अपने गोत्र की शाखाओं में बटने लगे थे। राजा महाराजाओं के सानिध्य में रहने वाले ब्राह्मणों ने अधिक लाभ प्राप्त किया। परंतु शुकराचार्य दैत्य गुरु होने से अन्य ब्राह्मणों ने इनके वंशजो से रंजिस रखते हुए इनको अलग वर्ग में रखा तथा तत्कालीन राजा महाराजाओं से कोई विशेष लाभ नही प्राप्त करने दिया तब महर्षि डामराचार्य ने ज्योतिष व चिकित्सा विद्या में निपुणता हासिल की ओर अपने पुत्रों को भी सिखाया।इन्होंने अथर्ववेद के प्रचलन के चरम काल मे जब अन्य ब्राह्मण कर्म कांड,पूजा,अनुष्ठान आदि कार्य कराने लगे तब डामराचार्य के वंशज ज्योतिष व चिकित्सा कार्य करने लगे।डामराचार्य जी के पुत्र डिंडिम ने अपने पिता के नाम पर अपने वंश को डक्का ब्राह्मण कहा और ज्योतिष कार्य करने लगे।तथा आगे चलकर ये डाकोत ब्राह्मण कहलाने लगे।बाद महृषि डामराचार्य के वंशज इनके मूल स्थान डाकोर गुजरात से राजस्थान से प्रवेश कर उत्तर भारत मे हरियाणा से दिल्ली व आगे तक बसते गए।पश्चिमी राजस्थान में इनको बाहर से आया हुआ होने के कारण ओर ज्योतिष का कार्य करने के कारण देशांतरी कहा गया।देशांतरी शब्द का एक अर्थ परदेशी भी होता है।
पौराणिक इतिहासः- (वायु पुराण अध्याय 4 व विष्वकर्मा पुराण)
भार्ये भृगोर प्रतिमे उत्तमेैभिजाते शुभे ।। हिरण्य कशिपोः कन्या दिव्यनाम्नी परिश्रुता ।।
पुलोम्नश्चापि पौलोमि दुहिता वर वर्णिनी ।। भृगोस्त्वजनयद्विव्या काव्यवेदविंदा वरं ।।
देवा सुराणामाचार्य शुक्रं कविसुंत ग्रहं ।। पितृंणा मानसी कन्या सोमपाना यशस्विनी ।। शुक्रस्य भार्यागीराम विजये चतुरः सुतान् ।। ब्राह्मणे मानसी कन्या सोमपाना यशस्विनीः ।। तस्या मेव तु चत्वार पुत्राः शुक्रस्य वज्राषिः ।। त्वष्टावरूपी द्वावेतौ शण्डामर्कोतु ताबुभो ।।
अर्थः- हिरण्यकश्यप की बेटी दिव्या और पुलोमी की बेटी पौलीमी उत्तम कुलीन, यह दोनों भृगु ऋषि को विवाही गई। दिव्या नाम वाली स्त्री के गर्भ से शुक्राचार्य पैदा हुए। सोम्य पितरों की मानसी कन्या अगीं नाम वाली शुक्राचार्य को विवाही गई। शुक्राचार्य जी के सूर्य के समान ब्रह्म तेज वाले त्वष्टा, वज्र, शंड और अर्मक यह पुत्र पैदा हुए।
महाभारत अनुषासन पर्व भाग 14 अध्याय 85 श्लोक सं. 128 व 129
भृगोस्तु पुत्रासप्तासन सर्वे तुल्या भृगोगुणे
चवन्यो वज्रषीर्षष्चः शुचिरोर्वस्तथैवच।
शुक्रो वरेण्यष्च विभुः सवनष्चेति सप्तते।
अर्थः-भुगु जी के गुणाो के समान उन्ही के वंष में चवन्य, व्रजषीर्ष, शुक्र, विभुव,वारुणी,व सवन आदि पुत्र हुये।
नारद पंचरात्र भाग-3 अध्याय 27 श्लोक 1 से 4
आसीत्पुरा मुनिश्रेष्ठो भार्गवो धर्मतत्परः
तस्य पुत्रोअतितेजस्वी शंडाचार्य इतिस्मृतः ।
द्वित्तिय मर्कटाचार्य शुक्रायार्चस्य पुत्रकः
शडाचार्यस्य भवपुत्रा शंकराचार्य वाचकः ।
त्तो वभूवषाडिंल्य स्वनाम्ना स्मृतिकारकः
तत्पुत्रो डामराचार्य चिकित्सा निपुण सदा ।
सज्योंतिर्मयेषास्त्रे निपुुण कृतवान् भव
सौसंहिता डामरी डक्काः तच्छिष्यावहवो भवत।
आसीत्पुरा मुनिश्रेष्ठो भार्गवो धर्मतत्परः
तस्य पुत्रोअतितेजस्वी शंडाचार्य इतिस्मृतः ।
द्वित्तिय मर्कटाचार्य शुक्रायार्चस्य पुत्रकः
शडाचार्यस्य भवपुत्रा शंकराचार्य वाचकः ।
त्तो वभूवषाडिंल्य स्वनाम्ना स्मृतिकारकः
तत्पुत्रो डामराचार्य चिकित्सा निपुण सदा ।
सज्योंतिर्मयेषास्त्रे निपुुण कृतवान् भव
सौसंहिता डामरी डक्काः तच्छिष्यावहवो भवत।
अर्थः- पूर्व काल में भार्गव मुनि अर्थात षुक्राचार्य जी एक श्रेष्ठ मुनि थे। उनके अति तेजस्वी शंडाचाय तर्था मर्कटाचार्य दो पुत्र उत्पन्न हुये। इन्ही शंडाचार्य के एक पुत्र साडिंल्य हुये जिन्होने साडिंल्य समृति बनायी।इन्ही साडिंल्य जी के महर्षि डामराचार्य हुये जो चिकित्सा व ज्योतिष विघा में बडे निपूण हुए वे डक्का नाम से प्रसिद्व हुए।
इन्ही महर्षि डक्क(डामराचार्य) का वंष डकोत/डाकौत/देशान्तरी कहलाते है।
प्रसिद्व लिखित पुस्तकेः- लेखक श्री छोटे लाल शर्मा अपनी पुस्तक बा्रहम्ण निर्णय (ब्राहम्ण मीमान्षा) में भारतवर्ष की सभी ब्राहम्ण जाति का परिचय बताते हुए डाकौत ब्राहम्ण जाति का निकाश पंचगौड ब्राहम्णो से होना बताया है।इसी प्रकार लेखक श्री बजरंग लाल लोहिया ने अपनी पुस्तक राजस्थान की जातिया में भी इसी तरह का मत दिया है।
डॉ. रामेश्वर दत्त शर्मा द्वारा लिखित पुस्तटक ‘ब्राह्मण समाज परिचय एवं योगदान‘ के मुखपृष्ठ पर अंकित ब्रह्मरूपी वृक्ष में 14 शाखाएं हैं और इन चैदह शाखाओं में अलग-अलग ब्राह्मणों का वर्णन किया गया है।
जैसे 1. गौड़ आदि गौड़, बंगाली और त्या गी 2. सारस्वयत, कुमडिये, जैतली, झिगन, त्रिखे, मोहल्ले , कश्मी्री 3. खण्डेयलवाल, दायमा, पुष्कौरणा, श्रीमाली, पारीक, पालीवाल, चोरसिया 4. कान्यखकुब्जग, भुमिहार, सरयूपारीण, सनाढय, जिझौतिया 5. मैथल, श्रोत्रिय 6. उत्कशल, मस्ता ना 7. सुवर्णकार, पांचाल, शिल्पियान, जांगडा, धीमान 8. गोस्वाझमी, आचार्य, डाकोत, वेरागी, जोगी, ब्रह्मभाट 9. कौचद्वीपी, शाकद्वीपी 10. कर्णाटक 11. तैलंग, बेल्लागरी, बगिनाड, मुर्किनाड़ 12. द्राविड़, नम्बूीदरी 13. महाराष्ट् चितपावन 14. गुर्जर, औदित्य., गुर्जर गौड़ नागर तथा देशाई। इस प्रकार ब्राह्मणों के कुछ 54 भेद हुए। जब ब्राह्मण एक जाति बन गई तो उनकी पहचान के लिए उनके वेद, शाखा, सूत्र गोत्र, प्रवर आदि पहचान कारक माने गए। यह क्रम मध्य काल तक चलता रहा। तदन्तेर ब्राह्मणों के भेद उनके प्रदेशों के आधार पर गठित किए गए।
पं. छोटेलाल शर्मा ने अपने ब्राह्मण निर्णय में ब्राह्मणों के 324 भेद लिखे हैं। ब्लू एम फील्ड के अनुसार ब्राह्मणों के 2500 भेद हैं। शेरिंग साहब के अनुसार ब्राह्मणों के 1782 भेद हैं, कुक साहब के अनुसार ब्राह्मणों के 924 भेद हैं, जाति भास्ककर आदि ग्रन्थों के अनुसार ब्राह्मणों के 51 भेद हैं। वैदिक काल में और उसके बहुत समय बाद तक किसी ना के साथ उपाधि लगती दिखाई नहीं देती। केवल नामों का ही उल्लेेख मिलता है। जैसे कश्यप, नारद, वशिष्ठग, पराशर, शांडिल्यभ, गौतम आदि, बाद में मनु के चारों वर्णों के चार आस्पोदों का उल्लेख मिलता है। अर्थात ब्राह्मण शर्मा, क्षत्रिय वर्मा, वैश्य गुप्तय तथा शुद्र दास आदि शब्दों का प्रयोग अपने नाम के पीछे करने लगे। बहुत समय बाद गुण, कर्म और वृति के सूचक तथा प्रशासकों, राजा-महाराजाओं द्वारा प्रदत्त उपाधियों का प्रयोग होने लगा।
इस प्रकार संर्भित स्त्रोतो से जानकारी प्राप्त कर यह संक्षिप्त में डाकौत ब्राम्हण समाज के वंश पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।समाज से सबन्धित अन्य किसी प्रकार की जानकारी के लिए कमेन्टस में बताये अगर सम्भव हुआ तो उपलब्ध कराने का प्रयास किया जायेगा।
इन्ही महर्षि डक्क(डामराचार्य) का वंष डकोत/डाकौत/देशान्तरी कहलाते है।
प्रसिद्व लिखित पुस्तकेः- लेखक श्री छोटे लाल शर्मा अपनी पुस्तक बा्रहम्ण निर्णय (ब्राहम्ण मीमान्षा) में भारतवर्ष की सभी ब्राहम्ण जाति का परिचय बताते हुए डाकौत ब्राहम्ण जाति का निकाश पंचगौड ब्राहम्णो से होना बताया है।इसी प्रकार लेखक श्री बजरंग लाल लोहिया ने अपनी पुस्तक राजस्थान की जातिया में भी इसी तरह का मत दिया है।
डॉ. रामेश्वर दत्त शर्मा द्वारा लिखित पुस्तटक ‘ब्राह्मण समाज परिचय एवं योगदान‘ के मुखपृष्ठ पर अंकित ब्रह्मरूपी वृक्ष में 14 शाखाएं हैं और इन चैदह शाखाओं में अलग-अलग ब्राह्मणों का वर्णन किया गया है।
जैसे 1. गौड़ आदि गौड़, बंगाली और त्या गी 2. सारस्वयत, कुमडिये, जैतली, झिगन, त्रिखे, मोहल्ले , कश्मी्री 3. खण्डेयलवाल, दायमा, पुष्कौरणा, श्रीमाली, पारीक, पालीवाल, चोरसिया 4. कान्यखकुब्जग, भुमिहार, सरयूपारीण, सनाढय, जिझौतिया 5. मैथल, श्रोत्रिय 6. उत्कशल, मस्ता ना 7. सुवर्णकार, पांचाल, शिल्पियान, जांगडा, धीमान 8. गोस्वाझमी, आचार्य, डाकोत, वेरागी, जोगी, ब्रह्मभाट 9. कौचद्वीपी, शाकद्वीपी 10. कर्णाटक 11. तैलंग, बेल्लागरी, बगिनाड, मुर्किनाड़ 12. द्राविड़, नम्बूीदरी 13. महाराष्ट् चितपावन 14. गुर्जर, औदित्य., गुर्जर गौड़ नागर तथा देशाई। इस प्रकार ब्राह्मणों के कुछ 54 भेद हुए। जब ब्राह्मण एक जाति बन गई तो उनकी पहचान के लिए उनके वेद, शाखा, सूत्र गोत्र, प्रवर आदि पहचान कारक माने गए। यह क्रम मध्य काल तक चलता रहा। तदन्तेर ब्राह्मणों के भेद उनके प्रदेशों के आधार पर गठित किए गए।
पं. छोटेलाल शर्मा ने अपने ब्राह्मण निर्णय में ब्राह्मणों के 324 भेद लिखे हैं। ब्लू एम फील्ड के अनुसार ब्राह्मणों के 2500 भेद हैं। शेरिंग साहब के अनुसार ब्राह्मणों के 1782 भेद हैं, कुक साहब के अनुसार ब्राह्मणों के 924 भेद हैं, जाति भास्ककर आदि ग्रन्थों के अनुसार ब्राह्मणों के 51 भेद हैं। वैदिक काल में और उसके बहुत समय बाद तक किसी ना के साथ उपाधि लगती दिखाई नहीं देती। केवल नामों का ही उल्लेेख मिलता है। जैसे कश्यप, नारद, वशिष्ठग, पराशर, शांडिल्यभ, गौतम आदि, बाद में मनु के चारों वर्णों के चार आस्पोदों का उल्लेख मिलता है। अर्थात ब्राह्मण शर्मा, क्षत्रिय वर्मा, वैश्य गुप्तय तथा शुद्र दास आदि शब्दों का प्रयोग अपने नाम के पीछे करने लगे। बहुत समय बाद गुण, कर्म और वृति के सूचक तथा प्रशासकों, राजा-महाराजाओं द्वारा प्रदत्त उपाधियों का प्रयोग होने लगा।
इस प्रकार संर्भित स्त्रोतो से जानकारी प्राप्त कर यह संक्षिप्त में डाकौत ब्राम्हण समाज के वंश पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।समाज से सबन्धित अन्य किसी प्रकार की जानकारी के लिए कमेन्टस में बताये अगर सम्भव हुआ तो उपलब्ध कराने का प्रयास किया जायेगा।
आपका-
राजेन्द्र कुमार भार्गव, गोरिया,
कांकरा, सीकर, राजस्थान
सधन्यवाद आभार- संदर्भ पुस्तके:-1. ब्राह्मण निर्णय, लेखक-श्री छोटे लाल शर्मा)
2.राजस्थान की जातिया, लेखक-बजरंग लाल लोहिया)
3. ब्राह्मण समाज परिचय एवं योगदान लेखक
श्री रामेश्वर दत्त शर्मा।
(इन्टरनेट स्त्रोतः-
(इन्टरनेट स्त्रोतः-
Blogg- brahmin in india (shri branded kumar mahangi)
And- (ब्राम्हण समाज से सबंधित अन्य साईट व ब्लोग)
And- (ब्राम्हण समाज से सबंधित अन्य साईट व ब्लोग)

Good
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